मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

कर्मण्ये वाधिका रस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्म फल हेतु र्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्व कर्मणि॥

भावार्थ:-तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में नहीं ।
इसलिए तू कर्म फल में हेतु रखने वाला मत हो,

तथा तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) भी आसक्ति न हो ।


जो कुछ भी आपको करना है, करें, लेकिन लालच के साथ नहीं, अहंकार से नहीं, वासना से नहीं, ईर्ष्या से नहीं, बल्कि प्रेम, करुणा, विनम्रता और भक्ति के साथ करें।

-भगवत गीता

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्‌ ॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्‌ । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ -भगवत गीता