मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

कर्मण्ये वाधिका रस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्म फल हेतु र्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्व कर्मणि॥

भावार्थ:-तेरा कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फल में नहीं ।
इसलिए तू कर्म फल में हेतु रखने वाला मत हो,

तथा तेरी अकर्म में (कर्म न करने में) भी आसक्ति न हो ।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें